IGNOU BA Economics Notes Question in Hindi
IGNOU BA Economics Notes Questions in Hindi with PDF Download for 2021-22 session students. Most important study material for 1st year exam paper preparation. These Questions for BAG (Bachelor of Arts General) students, who is doing graduation through ODL (Open distance learning) mode. IGNOU Mean Indira Gandhi National Open University.
Course Code: BECC131
Name of Course: Principles of Micro Economics- (i)
IGNOU BA ECONOMICS NOTES Question in Hindi
1. आवश्यकताओं के वे दो महत्वपूर्ण लक्षण बताइए जो उनकी संख्या को “अनंत” स्वरूप प्रदान कर देते है ?
उत्तर – अपरिमित, सदैव वृद्धिशील
2. एक अर्थव्यवस्था किसे कहते है ?
उत्तर – संसाधनों और आवश्यकताओं के बिच एक मौलिक एवं स्थाई असंतुलन की समस्या का समाधान के लिए गढ़ी गयी सरंचना को अर्थव्यवस्था कहते है |
3. सही विकल्प का चुनाव करें :
a) सड़ी हुई सब्जियों का भंडार
b) जंगल में निरोपयोगी पौधे
c) किसी नर्सरी (पौधशाला) में फूलों की संख्या
d) किसी गंदे कूप में पानी
उत्तर – c
4. अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएँ बताइए ?
उत्तर – अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएँ है –
a) क्या उत्पादन करें
b) कैसे उत्पादित करें
c) किसके लिए उत्पादित करें
d) संवृद्धि की समस्या
e) सार्वजानिक और निजी पदार्थो के बिच चयन की समस्या
f) विशेष गुण पदार्थो के उत्पादन की समस्या
5. पूंजी निर्माण क्या होता है?
उत्तर – पूंजी के भडार में वृद्धि ही पूंजी निर्माण है
6. उत्पादन की तकनीक किसे कहते है ?
उत्तर – उत्पादन तकनीक का अर्थ है, वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त आदानों के बिच सटीक अनुपात
7. विशेष गुण पदार्थ किसे कहते है ?
उत्तर – विशेष गुण पदार्थों के हितलाभ उनके उपभोक्ताओं के साथ-साथ गैर-उपभोक्ताओं को भी प्राप्त होते है |
8. सार्वजानिक और निजी पदार्थो के बिच भेद स्पष्ट करें |
उत्तर – निजी पदार्थो की सुलभता कुछ व्यक्तियों तक सिमित रहती है जबकि सार्वजानिक पदार्थों का सर्वसुलभ माना जाता है |
9. बताएं की ये कथन सत्य है या असत्य :
a) यथार्थमुलक अर्थशास्त्र का सम्बन्ध ‘क्या होना चाहिए’ से है |
उत्तर – असत्य
b) गुणमूलक अर्थशास्त्र में नीतिगत कदम सुझाने के लिए कुछ ‘जीवन मूल्य व्यवस्था’ की आवश्यकता रहती है?
उत्तर – सत्य
c) किसी भी आर्थिक समस्या के लिए प्रत्येक अर्थशास्त्री एक ही समाधान सुझाता है |
उत्तर – असत्य
d) यथार्थ सूचक अर्थशास्त्र सदैव वस्तु स्थिति को ही दर्शाता है |
उत्तर – (असत्य) यह तभी वस्तु स्थिति दर्शायेगा जब इसकी मान्यताएं विश्वास योग्य/ व्याहारिक हों, अन्यथा यह केवल सही तर्क रहेगा | इसके काम आ सकने वाले निष्कर्ष नहीं निकलेंगे |
e) हम सदैव ही व्यष्टि अर्थशास्त्र के निष्कर्षों को समष्टि अर्थशास्त्र में प्रभावी मान सकते है |
उत्तर – असत्य
f) मांग और आपूर्ति, दोनों ही स्टोक चर है |
उत्तर – असत्य
g) तुलनात्मक स्थैतिकी में दो संतुलन स्तरों की तुलना की जाती है |
उत्तर – सत्य
10. प्रथम स्तम्भ (क) की मदों की द्वितीय स्तम्भ (ख) की मदों के साथ मिलान करें |
स्तम्भ ‘क’ | स्तम्भ ‘ख’ |
i) एक फर्म और एक उद्योग का अध्ययन | क) वस्तु विनिमय |
ii) एक चर का मापन एक समय बिंदु पर होता है | ख) समष्टि अर्थशास्त्र |
iii) अर्थव्यवस्था के एक समूचे क्षेत्र का अध्ययन | ग) सीमांत उपयोगिता |
iv) एक समयावधि पर मापनीय चर | घ) अन्य बातें स्थिर रहे (Ceteris paribus) |
v) किसी वस्तु की आवश्यकता संतुष्ट करने की क्षमता | ड) प्रवाह चर |
vi) एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त संतुष्टि | च) व्यष्टि अर्थशास्त्र |
vii) अन्य बातें स्थिर रहने पर | छ) उपयोगिता |
viii) सेबो का अण्डों से विनिमय | ज) स्टॉक चर |
उत्तर – i ) च , ii) ज, iii) ख, iv) ड, v) छ, vi) ग, vii) घ, vii) क
11) दीर्घकाल सीमांत लागत तथा अल्पकाल सीमांत लागत की मध्य सम्बन्ध की चर्चा करें |
उत्तर – जब दी गयी निश्चित उत्पादन की मात्रा का उत्पादन करने के लिए, एक फर्म सर्वाधिक कुशलतम कारखाने को स्थापित करती है, उसकी अल्पकाल सीमांत लागत दीर्घकाल सीमांत लागत की बराबर हो जाती है |
12. एक उपभोक्ता की मांग की मात्रा के निर्धारक कारक कौन-से है?
उत्तर – एक उपभोक्ता द्वारा किसी वस्तु की मांग की मात्रा कई कारकों पर निर्भर करती है | ये इस प्रकार है –
i) सम्बद्ध वस्तु की कीमत
ii) अन्य सम्बंधित वस्तुओं की कीमते
iii) उपभोक्ता की आय
iv) उपभोक्ता की अभिरुचियाँ
1) वस्तु की अपनी कीमत: वस्तु की कीमत का उपभोक्ता द्वारा उसकी मांग की गई मात्रा पर बहूत गहरा प्रभाव रहता है | सामान्यत अगर कीमत अधिक हो तो मांगी गई मात्रा कम रहती है |
2) उपभोक्ता की आय का आकार : जब उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने से किसी वस्तु की मांग में वृद्धि होती है तो हम उस वस्तु को ही ‘सामान्य वस्तु’ की संघ्या दे देते है | इसके विपरीत स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है – आय में वृद्धि के कारण मांग में कमी होने पर हम उस वस्तु को ही ‘निष्कृत वस्तु’ कह देते है |
3) अन्य वस्तुओं की किमतें : कुछ मामलों में अन्य वस्तुओं की कीमत में वृद्दि होने पर किसी वस्तु की मागं में वृद्धि होती है तो किसी वस्तु की मांग में कमी | यह पहली प्रकार की वस्तु एक प्रतिस्थापक है और दूसरी प्रकार की वस्तु सम्पूरक है | चाय और कॉफी प्रतिस्थापक होते है तो कार और पेट्रोल या पैन और स्याही को सम्पूरक कहा जा सकता है |
4) उपभोक्ता की अभिरुचियाँ : यदि उपभोक्ता को कोई वस्तु रुचिकर लगने लगे तो वह उस वस्तु का अधिक उपभोग करने लगता है | इसी प्रकार, यदि उसे किसी वस्तु से अरुचि होने लगती है तो वह उसका उपभोग भी कम कर देगा |
13) निम्नलिखित कथनों में से सत्य तथा असत्य बताएं –
i) दीर्घकाल में स्थिर लागत तथा परिवर्ती लागतों के बिच अंतर करने की कोई आवश्यकता नहीं होती |
उत्तर – सत्य
ii) दीर्घकाल औसत लागत वक्र, अल्पकाल औसत कुल लागत वक्र को आवरण प्रदान करता है |
उत्तर – सत्य
iii) दीर्घकाल सीमांत लागत वक्र, दीर्घकाल औसत लागत वक्र को उसके न्यूनतम स्तर पर निचे से काटता है |
उत्तर –सत्य
14) दीर्घकाल औसत लागत वक्र की प्रकृति की चर्चा करें |
उत्तर – दीर्घकाल में सभी संसाधन परिवर्ती होते है | उत्पादन फलन में स्थिर साधनों की अनुपस्थिति के कारण, दीर्घकाल में उत्पादन के सभी लागतें परिवर्ती होती है तथा इसलिए स्थिर लागत तथा परिवर्ती लागत के बिच अंतर करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है | दीर्घकाल में, उत्पादन के स्तर को बढ़ाने के लिए, सभी साधनों को बढ़ाना पड़ता है तथा इसके परिणामस्वरूप पैमाने का विस्तार होता है |
15) इन कथनों में सत्य और असत्य बताइए :
i) मांग का नियम कहता है की वस्तु की कीमत और उसकी मांग की मात्रा के बिच विलोम सम्बन्ध होता है |
उत्तर – सत्य
ii) मांग वक्र सदैव ही बायीं से दाहिनी और ढलवां सरल रेखा होती है |
उत्तर – असत्य
iii) यदि प्रतिस्थापन प्रभाव धनात्मक आय प्रभाव पर भारी पड़े तो मांग का नियम लागु नहीं रहता |
उत्तर – असत्य
iv) प्रतिस्थापन प्रभाव + कीमत प्रभाव = आय प्रभाव
उत्तर – असत्य
v) यदि किसी प्रतिस्थापक की कीमत कम हो जाये तो वस्तु की मांगी गई मात्रा कम हो जायगी |
उत्तर – सत्य
vi) अभिरुचियों में परिवर्तन मांग वक्र के स्थान परिवर्तन का कारण बन जाता है |
उत्तर – असत्य
vii) यदि उपभोक्ता के अतिरेक या आधिक्य में वृद्धि सरकार द्वारा दिए गए साहाय्य से कम रहे तो उत्पादक उद्योग को साहाय्य प्रदान करना बेहतर होगा |
उत्तर – असत्य
viii) यदि उत्पादन की मात्रा किसी कीमत विशेष पर मात्रा से अधिक हो तो सरकार को उक्त वस्तु की कीमत कम कर देनी चाहिए |
उत्तर – सत्य
16) बताइए की यह कथन सत्य है या असत्य है :
i) मांग की आय लोच सदैव धनात्मक होती है
उत्तर – असत्य
ii) मांग की तिरछी लोच का गुणांक सदा ऋणात्मक होता है
उत्तर – असत्य
iii) मांग की कीमत लोच का अनुमान लगाते समय उपभोक्ता की आय को परिवर्तनशील माना जाता है |
उत्तर – सत्य
iv) सम्पूरक की पदार्थो की तिरछी लोच का गुणांक सदा धनात्मक होता है |
उत्तर – असत्य
v) निकृष्ट पदार्थो की मांग की कीमत लोच का गुणांक धनाताम्क होता है |
उत्तर – असत्य
vi) सामान्य वस्तुओं की मांग की कीमत लोच का गुणांक धनात्मक होता है |
उत्तर – सत्य
vii) मांग की आय लोच का आकलन करते समय वस्तुओं की कीमतों को परिवर्तनशील माना जाता है
उत्तर – असत्य
17) रिक्त स्थान भरें –
i) उत्पादक एक _______ कीमत पर अधिक आपूर्ति करते है न की _____ कीमत पर |
उत्तर – उच्चतर, निम्नतर
ii) आपूर्ति वक्र _______ ढलवां होता है
उत्तर – ऊपर की और
iii) अन्य बातें स्थिर रहने पर किसी वस्तु की कीमत में _____ होने पर उसकी बिक्री से प्राप्त लाभ कम हो जायेगा |
उत्तर – कमी
iv) आपूर्ति का नियम बताता है की अन्य बातें पूर्ववत् रहने पर किसी वस्तु की कीमत और उसकी आपूर्ति की मात्रा में _____ सम्बन्ध होता है |
उत्तर – प्रत्यक्षत:
18) बताइए की ये कथन सत्य है या असत्य:
i) आपूर्ति का नियम बताता है की किसी वस्तु की आपूर्ति और उसकी कीमत के बिच विपरीत सम्बन्ध होता है |
उत्तर – असत्य
ii) आपूर्ति का नियम बताता है की वस्तु की कीमत और उसकी प्रति समय इकाई आपूर्ति की मात्रा में एक सीधा सम्बन्ध है, यदि अन्य बातें स्थिर रहें |
उत्तर – सत्य
iii) आपूर्ति वस्तु की बिक्री के लिए पेश की गयी मात्रा से सम्बंधित है
उत्तर – असत्य
iv) आपूर्ति किसी कीमत विशेष पर अवधि विशेष में विक्रय हेतु प्रस्तुत मात्रा से सम्बंधित है |
उत्तर – सत्य
v) किसी उत्पादन क्षेत्र में प्रोद्योगिकीय विकास उसकी उत्पादन लागतें बढ़ा देता है |
उत्तर – असत्य
vi) किसी वर्तमान उत्पादक कार्य की नई व्यवस्था करना प्रोद्योगिकीय विकास नहीं है |
उत्तर – असत्य
vii) आपूर्ति एक स्टॉक विषयक संकल्पना है |
उत्तर – असत्य
viii) प्रत्येक फर्म का एक मात्र उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना ही हो सकता है |
उत्तर – असत्य
19) निम्नलिखित कथनों में एस कौन-सा सत्य और कौनसा असत्य है ? बताइए |
i) ‘आपूर्ति के प्रसार’ का अर्थ है वर्तमान कीमत पर ही आपूर्ति अधिक हो जाती है |
उत्तर – असत्य
ii) आपूर्ति का प्रसार और वृद्धि एक ही बात है |
उत्तर – असत्य
iii) प्रोद्योगिकी में परिवर्तन के कारण आपूर्ति में परिवर्तन होते है |
उत्तर – असत्य
iv) वस्तु की कीमत में कमी के कारण उसकी आपूर्ति में वृद्धि होती है |
उत्तर – असत्य
v) एक आपूर्ति वक्र पर एक बिंदु से दुसरे की और चलन आपूर्ति के नियम के व्यवहार को दर्शाता है |
उत्तर – सत्य
vi) आपूर्ति वक्र का बायीं और खिसकना आपूर्ति में वृद्धि को दर्शाता है |
उत्तर – असत्य
vii) एक आपूर्ति वक्र वस्तु की अपनी कीमत के अलावा अन्य कारकों में परिवर्तन के कारण खिसकता है
उत्तर – सत्य
20) आपूर्ति के प्रसार और आपूर्ति की वृद्धि के बिच भेद स्पष्ट करें |
उत्तर – कीमत में वृद्धि के फलस्वरूप आपूर्ति की मात्रा में वृद्धि को आपूर्ति का प्रसार तथा अन्य कारकों के फलस्वरूप वृद्धि को आपूर्ति में वृद्धि का नाम दिया जाता है |
21) आपूर्ति की लोच के कोई तिन महत्वपूर्ण निर्धारक बताइए ?
उत्तर – (i) वस्तु की प्रक्रति
(ii) कीमत विषयक प्रत्याशायें
(iii) उत्पाद की तकनीकों का स्वरूप
22) बताइए, निम्नलिखित में से कौनसा कथन सत्य है और कौनसा असत्य ?
i) आपूर्ति की लोच आपूर्ति के नियम के लागू होने के कारणों की व्याख्या करती है |
उत्तर – असत्य
ii) आपूर्ति का नियम लागु नहीं होने पर भी आपूर्ति की लोच का आकलन संभव है |
उत्तर – सत्य
iii) आपूर्ति की लोच मात्रा में किसी प्रतिशत परिवर्तन पर कीमत की संवेदनशीलता है |
उत्तर – असत्य
iv) लोचशीलता का अर्थ है की आपूर्ति में उतने ही प्रतिशत परिवर्तन होगा जितने प्रतिशत कीमत में परिवर्तन हुआ है |
उत्तर – असत्य
v) पूर्णत: लोचशील आपूर्ति वक्र Y-अक्ष के समांतर होता है |
उत्तर – असत्य
vi) लोचहिन आपूर्ति वक्र परिमाण अक्ष का प्रतिछेदन करता है |
उतर – सत्य
vii) एक वक्रीय आपूर्ति वक्र की लोच का मान उसके प्रत्येक बिंदु पर इकाई के समान होता है |
उत्तर – असत्य
viii) प्राय: वस्तु का अल्पकालिक आपूर्ति वक्र दीर्घकालिक वक्र की अपेक्षा कम लोचशील होता है |
उत्तर – सत्य
23) बताएं की ये कथन सत्य है या असत्य –
i) सभी मांग वक्रों के ढाल धनात्मक होते है |
उत्तर – असत्य
ii) कीमतों में परिवर्तन तभी होते है जब मांग आधिक्य हो, या आपूर्ति आधिक्य हो |
उत्तर – सत्य
iii) यदि मांग आधिक्य हो तो कीमतें गिरने लगती है |
उत्तर – असत्य
iv) वालरा संतुलनकारी प्रक्रिया मात्रा में परिवर्तन के माध्यम से कार्य करती है |
उत्तर – असत्य
v) मांग और आपूर्ति दोनों ही वक्रों के दाहिनी और खिसकने पर मात्रा में वृद्धि हो जाती है |
उत्तर – सत्य
24) मांग में वृद्धि के बावजूद निजी कंप्यूटरों की कीमतें निरंतर गिर रही है | व्याख्या करें |
उत्तर – व्यक्तिगत कंप्यूटरों की कीमत इसलिए कम हुई है की इनकी आपूर्ति में अपेक्षाकृत अधिक तीव्र वृद्धि हुई है |
25) नई कारें ‘सामान्य पदार्थ’ होती है | मान लें की किसी अर्थव्यवस्था में सशक्त आर्थिक प्रसार (वृद्धि) का दौर चल रहा है जिसमे व्यक्तियों की आयों में भारी वृद्धि होती है | निर्धारित करें की नई कारों की संतुलन कीमतों और संख्या (मात्रा) के संतुलन में क्या दिखाई देगा |
उत्तर – सामान्य वस्तु होने के कारण आय में वृद्धि से नई कारों की मांग में वृद्धि होती है | अत: मांग वक्र दाहिनी और खिसक जाता है | परिणामस्वरूप संतुलन कीमत और मात्रा, दोनों में वृद्धि होती है |
26) बताइए की कौन-सा कथन सत्य है और कौनसा असत्य |
i) यदि उच्चतम कीमत संतुलन कीमत के समान हो तो बाजार प्रभावित होगा |
उत्तर – असत्य
ii) न्यूनतम मजदूरी अधिनियम श्रमिकों के वास्तविक रोजगार में कमी कर देता है |
उत्तर – सत्य
iii) अंतर्पन्य कीमतों के विचरण को अधिक विस्तृत कर देता है |
उत्तर – असत्य
iv) जब मांग पूर्णत: लोचशील होती है तो कर का सारा भार उपभोक्ता उठाता है |
उत्तर – असत्य
27) मान लें की निति निर्माता पिज्जा की कीमत बहूत उच्च पा रहे है और उनका विचार है की इस कारण पर्याप्त संख्या में लोग इसे नहीं खरीद पा रहे है | परिणामस्वरूप वे पिज्जा पर एक अधिकतम कीमत लागू कर देते है, जो वर्तमान संतुलन कीमत से कम है | बताइए की क्या उपभोक्ता अब पहले से अधिक पिज्जा खरीद पाएंगे ?
उत्तर – अधिकतम कीमत नियत होने की अवस्था में उत्पादक कम माल बाजार में बेचना चाहेगा | उपभोक्ता कम पिज्जा उपभोग कर पाएंगे | बाजार में एक बड़ी अतृप्त मांग बनी रहेगी |
28) मान लें की किसी वस्तु की मांग में अप्रत्याशित उतार-चढाव आते रहते है | बताइए की सट्टे बाज किस प्रकार से वस्तु की कीमतों में उतार-चढाव सिमित कर देते है ?
उत्तर – सट्टेबाज लाभ की सम्भावना से प्रेरित हो वस्तु खरीदते है | यदि बाजार में कीमत (भविष्य में अपेक्षित कीमत से) अधिक हो तो वे अपने स्टॉक में से माल बेच भी देते है | यदि वर्तमान कीमत भविष्य की सम्भावित कीमत से कम हो तो वे वस्तु को खरीद कर अपने भंडार में जमा कर लेते है |
लाभ का पहला सुयोग – अपेक्षित कीमत से वर्तमान कीमत का अधिक होना सट्टेबाज को माल बेचने को प्रेरित करता है – इससे वर्तमान कीमत में कमी होती है |
लाभ का दूसरा सुयोग – जब वर्तमान कीमत भविष्य की आशा से कम हो तो वह खरीदारी करता है | इससे वर्तमान कीमत में वृद्धि होती है |
इस प्रकार भविष्य की अपेक्षित कीमत के वर्तमान से अधिक होने पर खरीदारी तथा कम होने पर बिक्री से वर्तमान और भविष्य की कीमत में अंतर काफी कम जो जाते है | इस प्रकार सट्टेबाज कीमत उच्च्वचन कम कर उसके परिवर्तनों को कम कर देते है |
29) निम्न कथनों को सत्य या असत्य के रूप में दर्शाएँ :
i) औसत परिवर्ती लागत वक्र एक आयताकार अतिपरवलय होता है |
उत्तर – सत्य
ii) औसत परिवर्ती लागत वक्र, औसत परिवर्ती साधन उत्पादकता वक्र का उल्टा होता है |
उत्तर – सत्य
iii) औसत कुल लागत वक्र उलटे U आकार का होता है |
उत्तर – असत्य
iv) जब सीमांत लागत वक्र औसत लागत वक्र के निचे होता है, औसत लागत वक्र बढ़ता है
असत्य
30) उपभोक्ता अधिमानो के बारे में आधारभूत मान्यताएं क्या है ?
उत्तर – ‘सम्पूर्णता’, उत्तरोंत्तरता और ‘कम की अपेक्षा अधिक’ बेहतर है |
31) उपभोक्ता अधिमान उपभोक्ता व्यवहार को कैसे प्रभावित करते है ?
उत्तर – उपभोक्ता व्यवहार को समझने की और पहला कदम उसकी वरीयताओं को समझना है | उपभोक्ता अपनी वरीयताओं तथा बजट संरोध के अनुसार व्यवहार करता है |
32) उस बिंदु पर सीमांत उपयोगिता क्या होती है जहाँ कुल उपयोगिता अधिकतम होती है ?
उत्तर – कुल उपयोगिता अधिकतम होने पर सीमांत उपयोगिता शुन्य हो जाती है |
33) वस्तु की कीमत के दिए होने पर, एक उपभोक्ता कैसे निर्णय करेगा की वस्तु की कितनी मात्रा को खरीदना है? उपयोगिता विश्लेषण का प्रयोग कीजिये |
उत्तर – उपभोक्ता वस्तु की उतनी मात्रा खरीदता है जहाँ उसकी सीमांत उपयोगिता वस्तु की कीमत के समान हो |
34) यदि वस्तु की कीमत रू. 10 है तथा एक उपभोक्ता की सीमांत उपयोगिता रू. 12 है, तब उपभोक्ता अतिरेक कितना होगा? उपयोगिता विश्लेषण का प्रयोग कीजिये |
उत्तर – उपभोक्ता का अतिरेक उसकी भुगतान तत्परता और वास्तविक भुगतान के बिच अंतर है | अत: यहाँ उपभोक्ता अतिरेक का मान रू. 2 है |
35) गणनावाचक उपयोगिता दृष्टिकोण का समीक्षात्मक परीक्षण कीजिये |
उत्तर – मांग का गणनावाचक उपयोगिता विश्लेषण इस मान्यता पर आधारित है की उपयोगिता को परम निरपेक्ष तथा मात्रात्मक रूप में मापा जा सकता है | लेकिन वास्तव में उपयोगिता को ऐसे नहीं मापा जा सकता है | चूंकि उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक और व्यक्तिपरक भावना है, अत: यह मात्रात्मक पदों में नहीं मापी जा सकती है | वास्तव में, उपभोक्ता केवल विभिन्न वस्तुओं या वस्तुओं के विभिन्न संयोजनों से व्युत्पन्न संतुष्टि की कुछ तुलना कर पाने में सक्षम है | दुसरे शब्दों में वास्तविक जीवन में उपभोक्ता केवल यह बता सकता है की वस्तु या वस्तुओं के एक संयोजन दुसरे की तुलना में ज्यादा कम अथवा समान संतुष्टि देते है | इस प्रकार, जे. आर हिक्स जैसे अर्थशास्त्रियों का विचार है की उपयोगिता के गणनावाचक मापन की मान्यता अवास्तविक है और इसलिए इसे छोड़ देना चाहिए |
36) समभाव वक्र मूल बिंदु के प्रति उन्नतोदर क्यों है?
उत्तर – ह्रासमान प्रतिस्थापन की सीमांत दर के कारण समभाव वक्र मूल बिंदु के प्रति उन्नतोदर है |
37) आय प्रभाव, कीमत प्रभाव तथा प्रतिस्थापन प्रभाव में भेद स्पष्ट कीजिये |
उत्तर – एक उपभोक्ता के संतुलन की अवस्था उसकी आय में परिवर्तन, प्रतिस्थापकों की कीमतें तथा उपभोग की गई वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तनों द्वारा प्रभावित होती है |ये निम्न रूप में जाने जाते है :
a) आय प्रभाव
b) प्रतिस्थापन प्रभाव
c) कीमत प्रभाव
a) आय प्रभाव यदि उपभोक्ता की आय परिवर्तित होती है तो उसकी खरीद पर होने वाले प्रभाव को आय प्रभाव के रूप में जाना जाता है | आय प्रभाव को आय में परिवर्तनों के कारण उपभोक्ता की खरीदों पर प्रभाव के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, यदि वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहती है | यदि उपभोक्ता की आय बढती है तो उसकी बजट रेखा प्रारंभिक बजट रेखा के समांतर दायीं तरफ ऊपर की और विवर्तित होगी | इसके विपरीत, उसकी आय में गिरावट बजट रेखा को अन्दर की तरफ बायीं और विवर्तित करेगा | बजट रेखाएं एक दुसरे के समान्तर होती है क्योंकि सापेक्षित कीमतें अपरिवर्तित रहती है |
आय प्रभाव तिन प्रकार का हो सकता है : 1) धनात्मक : जब आय में वृद्धि के कारण एक वस्तु के लिए या दोनों वस्तुओं के लिए मांग में वृद्धि धनात्मक आय प्रभाव है |
2) ऋणात्मक आय प्रभाव : आय प्रभाव ऋणात्मक है, जब उसकी आय में वृद्धि के साथ, उपभोक्ता उसकी वस्तु के उपभोग को कम करता है |
3) शुन्य आय प्रभाव : यदि आय में परिवर्तन के साथ, एक वस्तु की खरीदी गयी मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता है, तब आय प्रभाव को शुन्य कहा जाता है | शुन्य आय प्रभाव दवाइयों, नमक इत्यादि वस्तुओं में होता है |
b) प्रतिस्थापन प्रभाव :प्रतिस्थापन प्रभाव एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप मांगी गई मात्रा में परिवर्तन से सम्बंधित है जब दूसरी वस्तु की कीमत, उपभोक्ता की आय तथा रुचियों को स्थिर रखे तो यह सापेक्षित रूप से एक वस्तु के स्थान पर सस्ती वस्तु के प्रतिस्थापन को प्रेरित करता है |
c) कीमत प्रभाव : कीमत प्रभाव उपभोक्ता की वस्तु की खरीद में परिवर्तन की प्रक्रिया को दर्शाता है | मान लीजिये की उपभोक्ता वस्तु का उपभोग करता है जो उसकी आवश्यकताओं को पूरा करती है अगर उसकी आवश्यकताएं वस्तु b पूरा करे और उसका मूल्य/कीमत वस्तु a से कम है तो उपभोक्ता वस्तु b को खरीदेगा, इसे कीमत प्रभाव कहते है |
38) इन कथनों में सत्य तथा असत्य बताइए:
i) सीमांत उत्पाद औसत उत्पाद से अधिक होगा, जब औसत उत्पाद घट रहा है |
उत्तर – असत्य
ii) जब एक सीमांत उत्पाद बढ़ता है, कुल उत्पाद वक्र लगातार बढ़ता है
उत्तर – सत्य
39) सीमांत तथा औसत उत्पाद वक्रों के बिच संबंधो की चर्चा कीजिये |
उत्तर – i) जब सीमांत उत्पाद बढ़ता है औसत उत्पाद भी बढ़ता है हालाँकि बढ़ने की दर, सीमांत उत्पाद की दर से कम होती है | इस सन्दर्भ में यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है की जब सीमांत उत्पाद घटना आरम्भ कर देता है, किन्तु औसत उत्पाद से अधिक होता है, तब औसत उत्पाद बढ़ता रहता है |
ii) जब औसत उत्पाद अधिकतम होता है सीमांत उत्पाद इसके समान होता है |
iii) जब सीमांत उत्पाद घटता है, यह औसत उत्पाद को भी निचे खिंच ले जाता है | हालाँकि, औसत उत्पाद के घटने की दर, सीमांत उत्पाद की घटने की दर से कम रहती है |
40) निम्नलिखित वाक्यों में से कौनसा कथन सत्य है और कौनसा असत्य, बताइए |
i) उत्पादन की दूसरी अवस्था में, सीमांत उत्पाद तथा औसत उत्पाद दोनों घटते है |
उत्तर – असत्य
ii) उत्पादन की तीसरी अवस्था में, सीमांत उत्पाद ऋणात्मक होता है
उतर – सत्य
iii) घटते प्रतिफल के नियम केवल कृषि में लागू होता है |
उत्तर – असत्य
41) वर्णन कीजिये : i) बढ़ते प्रतिफल के नियम, ii) स्थिर प्रतिफल के नियम
i) बढ़ते प्रतिफल के नियम : आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, जब उत्पादन की आरंभिक अवस्था में, परिवर्तित आगत की मात्रा में वृद्धि होती है, उत्पादन में बढ़ते प्रतिफल की प्रवर्ती लागू होती है |
ii) स्थिर प्रतिफल का नियम : यदि एक फर्म में उत्पादन के परिवर्ती साधनों की मात्रा को लगातार बढ़ाने पर भी, सीमांत उत्पाद न बढ़ता है और न ही घटता है लेकिन स्थिर रहता है, तो स्थिर प्रतिफल की प्रवृति लागू होगी | वास्तव में, ऐसा कोई उद्योग नहीं है जिसमे उत्पादन के परिवर्ती साधनों में वृद्धि करने पर, स्थिर प्रतिफल प्राप्त होते है |
42) निम्नलिखित कथनों को सत्य या असत्य के रूप में दर्शाएँ :
i) उत्पादन के साधनों की पूर्ण प्रतिस्थापना की स्थिति में, सम-उत्पाद वक्र मूल बिंदु की और उन्नतोदर होते है |
उत्तर – असत्य
ii) सम-उत्पाद वक्र धनात्मक ढाल वाले होते है |
उत्तर – असत्य
iii) उच्च सम-उत्पाद वक्र, उच्च उत्पादन स्तर को दर्शाता है |
उत्तर – सत्य
iv) कोई दो सम उत्पाद वक्र एक दुसरे को नहीं काटते है |
उत्तर – सत्य
43) निम्नलिखित कथनों में से कौनसा कथन सत्य है और कौनसा असत्य ? बताइए |
i) अनुकूलन प्रयोग के लिए सीमांत तकनिकी प्रतिस्थापन दर, साधन कीमत अनुपात से अधिक होती है _
उत्तर – असत्य
ii) कटक (रिज) रेखाओं के बिच का क्षेत्र, दोनों संसाधनों के लिए उत्पादन की दूसरी अवस्था का निरूपण करता है |
उत्तर – सत्य
iii) एक सम-लागत रेखा, आगतों के विभिन्न संयोजनों को दर्शाती है, जिन्हें एक दी गई व्यय राशी से क्रय किया जा सकता है
उत्तर – सत्य
iv) दाई और सबसे दूर की सम-लागत रेखा उच्च लागत को दर्शाती है |
उत्तर – सत्य
v) विस्तार पथ पर प्रत्येक बिंदु, उत्पादक के संतुलन बिंदु को दर्शाता है
उत्तर – सत्य
vi) क्रमिक सम-उत्पाद वक्रों और सम-लागत रेखाओं के स्पर्श बिन्दुओं को मिलाने वाली रेखा फर्म के विस्तार पथ का निर्माण करती है |
उत्तर – सत्य
44) व्याख्या कीजिये की क्यों आगतों के न्यूनतम लागत संयोजन के लिए, एक फर्म के लिए यह आवश्यक है की तकनिकी प्रतिस्थापन की सीमांत दर, आगतों के अनुपात के समान होनी चाहिए |
उत्तर – यदि एक उत्पादक चाहता है की एक दिए गए उत्पादन की मात्रा के उत्पादन की लागत न्यूनतम हो जाये बजाय इसके की एक निर्धारित लागत पर उत्पादन अधिकतम हो, उसके संतुलन की शर्तें औपचारिक रूप से समान ही रहती है | अर्थात, सीमांत तकनिकी प्रतिस्थापन की दर, साधन कीमत अनुपात के समान हो |
45) निम्नलिखित कथनों को सत्य तथा असत्य के रूप में दर्शाएँ:
i) जब उत्पाद में, उत्पादन के साधनों की मात्रा में वृद्धि की तुलना में अधिक अनुपात में वृद्धि होती है, वह पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था होती है |
उत्तर – सत्य
ii) वे मितव्ययताएँ जो फर्म को अन्य फर्मों के कारण प्राप्त होती है बाह्य मितव्ययताएँ कहलाती है |
उत्तर – सत्य
iii) उत्पादन मितव्ययताएँ वित्तीय आंतरिक मितव्ययताओं का एक भाग है |
उत्तर – असत्य
iv) रेखीय समरूप उत्पादन फलन की स्थिति में, हमें पैमाने के स्थिर प्रतिफल प्राप्त होते है |
उत्तर – सत्य
46) पैमाने के बढ़ते प्रतिफल के कारकों की चर्चा कीजिये |
उत्तर – जब उत्पादन के साधनों के बिच अनुपात को स्थिर रखा जाता है तथा पैमाने में विस्तार किया जाता है, आरम्भ में उत्पाद में वृद्धि, उत्पादन के साधनों में वृद्धि की तुलना में अधिक अनुपात में होती है |
47) पैमाने के घटते प्रतिफल कैसे प्रारंभ हो जाते है ? व्याख्या कीजिये |
उत्तर – पैमाने के घटते प्रतिफल यह सुनिश्चित कर देते है की उत्पादक फर्मो का आकार अनंत रूप से बड़ा नहीं हो सकता | सामान्यत: एक सीमा के पश्चात जब उत्पादन के साधनों की मात्रा में इस प्रकार वृद्धि की जाती है की उत्पादन के साधनों का अनुपात अपरिवर्तित रहता है तो उत्पादन के साधनों की मात्रा में होने वाली वृद्धि की तुलना में उत्पादन कम अनुपात में बढ़ता है | उदाहरण के लिए यह हो सकता है की श्रम तथा पूंजी की मात्रा में सौ प्रतिशत की वृद्धि होने पर उत्पादन की मात्रा में केवल 75% की वृद्धि हो | अन्य शब्दों में, यदि उत्पादन की मात्रा को दोगुना करना है, तब उत्पादन के साधनों की मात्रा को दोगुने से अधिक करना होगा |
48) पैमाने की आंतरिक मितव्ययताओं की चर्चा कीजिये |
उत्तर – समान्यत:, जब उत्पादन के पैमाने को बढ़ाना होता है, फर्म छोटे कारखाने को बड़े कारखाने में बदलती है | यह उत्पादन की कुशलता में वृद्धि करता है | हालाँकि, यह सदैव आवश्यक नहीं है की उत्पादन के पैमाने में विस्तार करने के लिए कारखाने को बदला जाये | फर्म अपने पुराने कारखाने को चालू हालत में रख सकती है या समान प्रकार के नए कारखाने को स्थापित कर सकती है या कुछ नए प्रकार का नया कारखाना लगा सकती है | इस सभी विकल्पों में, फर्म विभिन्न प्रकार की अनेक मितव्ययता प्राप्त करती है | तथ्य यह है की वह पैमाने की मितव्ययताएं ही है जो दीर्घकालिक औसत लागत वक्र की प्रक्रति का निर्धारण करती है |
पैमाने की वास्तविक आंतरिक मितव्ययताएँ
जब उत्पादन के पैमाने का विस्तार होता है, फर्म को कुछ वास्तविक आंतरिक मितव्ययताएँ प्राप्त होती है | ये मितव्ययताएँ फर्म को कच्चे माल की भौतिक मात्रा में बचत, श्रम स्थिर तथा परिवर्ती पूंजी, अन्य आगतों के रूप में प्राप्त होती है | मोटे तौर पर कहें तो वास्तविक आंतरिक मितव्ययताएँ निम्न प्रकार की होती है जो निम्नलिखित है: (i) उत्पादन मितव्ययताएँ (ii) प्रबंधकीय मितव्ययताएँ (iii) यातायात और भण्डारण की मितव्ययताएँ
i) उत्पादन मितव्ययताएँ : जब उत्पादन के पैमाने में विस्तार होता है, एक फर्म को उत्पादन की प्रक्रिया में ही अनेक प्रकार की मितव्ययताओं के अवसर प्राप्त होते है | बड़े पैमाने पर उत्पादन, फर्म को श्रम का व्यापक विभाजन करने तथा बड़ी स्वचालित मशीन लगाने में सक्षम बनाता है | बड़ी मात्रा में उत्पादन होने के कारण मशीनों की क्षमता का भी पूर्ण उपयोग हो पाता है | मशीनों के पुर्जो की मरम्मत के लिए किसी अन्य पर निर्भर होने की बजाय, फर्म स्वयंतकनीशियन या कर्मचारिओं को इस कार्य के लिए रोजगार पर रख सकती है | यदि उत्पादन का आकार छोटा है, अपेक्षाकृत बड़ी मात्रा में यह सामग्री अनुपयोगी रह जाती है | तथापि, यदि उत्पादन का पैमाना बड़ा है, तब अपशिष्ट पदार्थ से भी कुछ उपयोगी वस्तुएं तैयार की जा सकती है | उदाहरण के लिए, चीनी मिल में बच गए रस से, अल्कोहल तैयार किया जा सकता है | जब उत्पादन के पैमाने का आकार छोटा होता है तो उत्पादक पैकेजिंग विभाग के व्यय को सहन नहीं कर पाता | इस कारण से, उत्पादक को पैकेजिंग सामग्री, जैसे डिब्बे, लेबल आदि के लिए अन्य पर निर्भर रहना पड़ता है |इससे पैकेजिंग पर भी एक बड़ी राशी का व्यय होता है | तथापि, यदि उत्पादन का पैमाना बड़ा है, उत्पादक इकाई, अपना स्वयं का पैकेजिंग विभाग स्थापित कर सकती है जिससे प्रति इकाई पैकेजिंग लागत में कमी आती है तथा मितव्ययता होती है |
ii) प्रबंधकीय मितव्ययताएँ :प्रबंधकीय लागत, आंशित रूप से उत्पादन लागत तथा आंशित रूप से विक्रय लागत होती है | किन्तु सामान्य तौर पर ये अलग मानी गयी है, क्योंकि ऐसा करना सुविधाजनक होता है | प्रबंधकीय मितव्ययताएँ निम्नलिखित दो आधारभूत कारणों से प्राप्त होती है : पहला, प्रबंध के क्षेत्र में विशेषता का लाभ केवल तब प्राप्त किया जा सकता है जब उत्पादन का पैमाना पर्याप्त रूप से बड़ा होता है | जब उत्पादन का पैमाना छोटा होता है, उत्पादन, विपणन, वित्त आदि से सम्बंधित सभी प्रबंधकीय दायित्व एक ही व्यक्ति द्वारा वहन किये जाते है | यह प्रबंधन की गुणवत्ता तथा स्तर में वृद्धि करता है | उसे समय में, उत्पादन के पैमाने का विस्तार होता है, इन कार्यों को देखने के लिए अलग-अलग प्रबंधक नियुक्त किये जाते है | यह प्रबंधन की गुणवत्ता तथा स्तर में वृद्धि करता है | उसी समय में, उत्पादन के पैमाने में वृद्धि के अनुपात में लागत में वृद्धि नहीं होती | बड़ी फर्म प्रबंध के उद्देश्य से अनेक प्रकार की मशीनों के प्र्योत की स्थिति में होती है | कंप्यूटर का प्रयोग, टेलीफोन, इन्टरनेट आदि का प्रयोग केवल पर्याप्त रूप से बड़ी फर्म द्वारा किया जा सकता है | यदि छोटी फर्म इन मशीनों का प्रयोग करती है तब इन पर व्यय होने वाली कुल लागत प्राप्त किये गए उत्पादन के स्तर से कही अधिक हो सकती है |
iii) परिवहन तथा भण्डारण में मितव्ययताएँ : जब उत्पादन के पैमाने में विस्तार होता है, फर्म को परिवहन तथा भण्डारण में मितव्ययताएँ प्राप्त होती है | लघु फर्मो को सामान्यत: सार्वजानिक परिवहन पर निर्भर रहना पड़ता है तथा इसलिए इनकी प्रति इकाई यातायात लागत अधिक होती है | जैसे-जैसे उत्पादन के पैमाने का विस्तार होता है, फर्म अपने स्वयं के ट्रक, टेम्पो, ट्रोली आदि खरीद सकती है, इससे फर्म की प्रति इकाई परिवहन लागत में कमी आती है | यदि फर्म इसके पश्चात भी उत्पादन के पैमाने में और अधिक विस्तार करती है, तो फर्म बड़े ट्रक तथा टेम्पो खरीद सकती है | रेलवे भी बड़े उत्पादकों को एक तरफ की रेल लाइन या एक छोटी रेल लाइन की सुविधा प्रदान करती है तथा इससे इनकी सामान लादने की लागत में कमी होती है | वास्तव में, परिवहन लागत आंशित रूप से उत्पादक लागत तथा अंशित रूप से विक्रय तथा विपणन लागत है | जब फर्म कच्चे माल का क्रय करती है, लदान लागत, उत्पादन लागत का भाग होती है | दूसरी और, जब उत्पादित वस्तुओं को बाजार में ले जाया जाता है, यह विक्रय तथा विपणन लागत का भाग होती है | तो भी, विश्लेषण की सुविधा के लिए, अर्थशास्त्री परिवहन लागत को अलग से व्यवहार करने को प्राथमिकता देते है |
परिवहन लागत की तरह, भण्डारण लागत भी आंशित रूप से उत्पादन लागत है तथा आंशित रूप से विक्रय तथा विपणन लागत है | उदाहरण के लिए कच्चे माल के भण्डारण पर होने वाला व्यय उत्पादन लागत है जबकि निर्मित तथा अर्धनिर्मित वस्तुओं के भण्डारण पर होने वाला व्यय, विपणन लागत का भाग है | गोदाम के आकार के दृष्टिकोण से, एक महत्वपूर्ण बात याद रखने योग्य है की गोदाम का आकार जितना बड़ा होगा, फर्म को प्राप्त होने वाली मितव्ययताएँ भी उतनी ही अधिक होंगी | इसका कारण यह है की गोदाम के निर्माण की लागत उस समान अनुपात में नहीं बढती जिस अनुपात में गोदाम की भंडार क्षमता में वृद्धि होती है |
49) बाह्य मितव्ययताओं तथा बाह्य अपमितव्ययताओं से आपका क्या अभिप्राय है ?
उतर – बाह्य मितव्ययताएँ : बाह्य मितव्ययताएँ की चर्चा सबसे पहले अल्फ्रेड मार्शल द्वारा की गयी थी | उनके अनुसार, जब एक फर्म उत्पादन में प्रवेश करती है, उसे अनेक प्रकार की मितव्ययताएँ प्राप्त होती है जिसके लिए फर्म को अपनी उत्पादन रणनीति, प्रबंधकीय व्यवस्थाएं अदि उत्तरदायी नहीं होती | वास्तव में, ये सब मितव्ययताएँ फर्म से बाहर की है | उदाहरण के लिए हम कल्पना करते है की एक फर्म एक ऐसे स्थान पर स्थापित की गयी है जहाँ परिवहन, विज्ञापन सुविधाएँ आदि उपलब्ध नहीं है | यदि फर्म का आकार छोटा रहता है, यह संभव है की ये सभी सुविधाएँ भविष्य में भी स्थानीय तौर पर उपलब्ध न हो | किन्तु यदि फर्म के आकार में काफी वृद्धि होती है, तो ये सभी सुविधाएँ स्वयं फर्म तक आनी प्रारंभ हो जाएँगी | ये सभी, वास्तव में, बाह्य मितव्ययताएँ है |
जब एक फर्म उत्पादन के पैमाने में विस्तार करती है, अन्य फर्में भी अनेक प्रकार की मितव्ययताएँ प्राप्त करती है | उदाहरण के लिए एक बड़ी फैक्ट्री उत्पादन के विभिन्न कारकों को नियमित तौर पर आकर्षित करती है, उसके पडोस में स्थापित की गयी अनेक अन्य फैक्ट्रियां भी, जो शायद स्वयं अपने बल पर इन कारकों को आकर्षित नहीं कर पाती, इसका लाभ प्राप्त करती है | इन सभी फैक्ट्रीओं को ये सभी कारक व्यावहारिक तौर पर उसी कीमत पर प्राप्त होते है जिस कीमत पर बड़ी फैक्ट्री ने हासिल किये है |
बड़े पैमाने पर उत्पादन की बाह्य मितव्ययताएँ के कारण, निजी प्रतिफल तथा सामाजिक प्रतिफल के बिच अंतर आ जाता है | जब एक फर्म उत्पादन के पैमाने में विस्तार करती है, अन्य फार्मों के लिए अपनी उत्पादन की लागत कम करना संभव हो जाता है | फिर भी, प्रचलित कीमत तंत्र में एसी कोई विधि उपलब्ध नहीं है जिससे एक फर्म अपने पैमाने के विस्तार से अन्य फर्मो को प्राप्त होने वाले लाभ की कीमत वसूल सके |
बाह्य अप्मित्व्ययताएँ : जब उत्पादन के पैमाने में विस्तार होता है, अनेक इस प्रकार की अपमितव्ययतायें भी उत्पन्न हो जाती है जिनका स्वयं फर्म पर कोई विशेस बुरा प्रभाव नहीं पड़ता | वास्तव में, इसका भर अन्य फर्मो पर पढता है | इस कारण से ये बाह्य अपमितव्ययताएँ कहलाती है | एक फर्म की चिमनी से उठने वाला धुआं पर्यावरण को प्रदूषित करता है | जब फर्म छोटे आकार की होती है, प्रदूषण कम होता है तथा आसपास की कॉलोनियों में रहने वाले लोगों पर इसका बुरा प्रभाव भी सिमित होता है | किन्तु, यदि फर्म का पैमाना बड़ा है, तो निकलने वाला धुआं अधिक घना होगा तथा आसपास के लोगों के स्वास्थ्य पर पढने वाला प्रभाव भी अधिक हानिकारक होगा | इसी प्रकार, जब फक्ट्रियों के उत्पादन के पैमाने में वृद्धि होती है, तो रोजगार भी तेजी से बढ़ता है | इससे इन शहरो में जहाँ फर्म स्थित है यातायात में जमाव तथा भीड़ की समस्याएँ उत्पन्न होती है | कृषि में, उत्पादन के पैमाने में वृद्धि से साथ लगे हुए खेतों में भी भू-क्षरण (मृदा अपरदन) तथा उर्वरकता में कमी होती है | ऊपर दिए गए उदाहरण से, यह स्पष्ट है की बाह्य मितव्ययताएँ तथा बाह्य अपमितव्ययताएँ, वित्तीय तथा तकनिकी दोनों हो सकती है |
50) निम्न कथनों को सत्य या असत्य के रूप में दर्शाएँ :
i) बाहय्तायें निजी लागत का भाग नहीं होती है |
उत्तर – सत्य
ii) अंतर्निहित लागतें वे लागते है जो फर्म के स्वयं के संसाधनों के प्रयोग से सम्बंधित है |
उत्तर – सत्य
iii) पूर्वप्रभावी लागतें निर्णय लेने से सम्बद्ध है |
उत्तर – असत्य
iv) लेखापाल एक फर्म के वित्त को पूर्वप्रभावी दृष्टि से देखते है |
उत्तर – सत्य
v) अर्थशास्त्री अवसर लागत के प्रति अधिक चिंतित होते है |
उत्तर – सत्य
vi) एतिहासिक लागत एक समान प्रकार की नई परिसंपति की वर्तमान लागत है |
उत्तर – असत्य
51) स्पष्ट लागतों तथा अंतर्निहित लागतों के बिच अंतर को समझाइए |
उत्तर – स्पष्ट लागतें, एक फर्म तथा अन्य पक्षों के बिच लेन-देन के कारण उत्पन्न होती है, ये लागतें सामान्यत: वे लागतें होती है जिन्हें लेखांकन विवरण में दर्शाया जाता है तथा इसमें मजदूरी भुगतान, कच्चे माल की लागत, ऋण पर ब्याज, बीमे का भुगतान, बिजली का भुगतान, आदि शामिल होता है | अंतर्निहित लागतें, वे लागतें होती है जो फर्म द्वारा स्वयं स्वामित्व वाले संसाधनों के प्रयोग से सम्बंधित होती है क्योंकि यदि इन संसाधनों को कहीं और लगाया जाता तो इन्हें प्रतिफल प्राप्त होता | इनका आकलित मूल्य अंतर्निहित लागतों में शामिल होता है यद्यपि अंतर्निहित लागतों की गणना कठिन होती है | किन्तु अर्थशास्त्री फिर भी जोर देकर कहते है की अंतर्निहित लागतों को फर्म की क्रियाओं के विश्लेषण के दौरान ध्यान में रखना चाहिए |
52) निजी लागत तथा सामजिक लागत के बिच अंतर कीजिये |
उत्तर – व्यष्टि अर्थशास्त्र सिद्धांत में, निजी लागत तथा सामाजिक लागत, दोनों अवधारणाओं का प्रयोग किया जाता है | एक फर्म, लाभ अधिकतम करने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, पूरी तरह निजी लागतों पर ध्यान देती है |
निजी लागते: प्रत्येक फर्म को एक वस्तु के उत्पादन के लिए विभिन्न आगतों की आवश्यकता होती है | इन सभी आगतों पर अधिकार पाने के लिए फर्म को प्रत्येक आगत के लिए कुछ कीमत का भुगतान करना होता है | सामान्य बोलचाल में भुगतान की गयी इस राशी को लागत कहते है | अर्थशास्त्री, हालाँकि, निजी लागत में न केवल उत्पादक द्वारा बाजार से उत्पादन के साधनों (या आगतों) को खरीदने (या किराये पर लेने) के लिए व्यय को शामिल करते है, अपितु उन सभी अंतर्निहित लागतो को भी शामिल करते है जो उत्पादक द्वारा स्वयं प्रदान की गयी सेवाओं की लागत आंकी जाती है | किसी उत्पाद की निजी लागत को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है की यह उत्पादन में प्रयुक्त सभी उत्पादक सेवाओं का क्रय मूल्य या आंकलित मूल्य है तथा इनको प्राप्त करने के लिए फर्म द्वारा किये गए कुल मौद्रिक त्याग के बराबर है | सामान्यत: अर्थशास्त्री निम्नलिखित व्यय को लागत में शामिल करते है : (i) कच्चे माल की लागत (ii) श्रमिको की मजदूरी (iii) पूंजीगत ऋण पर ब्याज का भुगतान (iv) भूमि तथा भवन का किराया (v) मशीनों की मरम्मत की लागत तथा मूल्य ह्रास (vi) सरकार तथा स्थानीय निकायों को कर का भुगतान (vii) उत्पादक द्वारा किये गए कार्यों के लिए स्वयं को अंतर्निहित मजदूरी का भुगतान (viii) उत्पादक द्वारा स्वयं निवेश की गयी पूंजी पर अंतर्निहित ब्याज का भुगतान (ix) उत्पादक द्वारा स्वयं स्वामित्व भूमि तथा भवन का अंतर्निहित किराया
सामाजिक लागतें : सामाजिक लागतें, निजी लागतों से दो कारणों के आधार पर अलग है :
पहला : बाह्यताओं को निजी लागतों में शामिल नहीं किया जाता है | उदाहरण के लिए, आवासीय क्षेत्र में स्थित एक कारखाना वातावरण को प्रदूषित करके उस आवासीय कॉलोनी में रहने वाले निवासियों के सामने विभिन्न बिमारियों के खतरे खड़ा करता है तथा उनकी चिकित्सा व्यय को बढाता है | यद्यपि समाज की दृष्टि से ये लागतें काफी महत्वपूर्ण है | यह फर्म द्वारा कभी भी लागत के अंश के तौर पर नहीं समझी जाती |
दूसरा: बहूत अधिक जनसँख्या वाले देशो में जहाँ छिपी हुई बेरोजगारी का फैलाव कृषि क्षेत्र में बहूत अधिक पाया जाता है, औद्योगिक मजदूरी अधिकतर उस अवसर लागत से अधिक पाई जाती है जो श्रम को कृषि क्षेत्र से प्राप्त होती है | सामाजिक लागत की गणना करने में, वस्तुओं तथा उत्पादन के साधनों की समायोजित बाजार कीमतें प्रयोग की जाती है | यहाँ उत्पादन के साधनों की समायोजित कीमतें छाया कीमतें भी कहलाती है, वस्तुओं की समायोजित कीमतें सामाजिक कीमतें कहलाती है
53) डूबत लागत तथा अतिरिक्त लागत के बिच क्या अंतर है ?
उत्तर – अर्थशास्त्र तथा व्यापार निर्णयन में, डूबत लागत वह लागत है, जो व्यय की जा चुकी है तथा जिसे वापस प्राप्त नहीं किया जा सकता है | डूबत लागतें (जिन्हें पूर्व प्रभावी लागतें भी कहते है) कभी-कभी भावी लागतों के विपरीत होती है, जो भविष्य की लागतें होती है जोई कोई कार्य किये जाने पर उठाई जाती है, या बदल जाती है | परम्परागत व्यष्टि अर्थशास्त्र में, केवल भावी (भविष्य) लागतें निर्णयन से सम्बंधित होती है, क्योंकि डूबत लागतें पहले ही व्यय की जा चुकी है तथा इन्हें वापस प्राप्त नहीं किया जा सकता है | इसलिए ये एक विवेकशील निर्णय लेने वाले के चयन को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करती है |
उत्पादन या किसी अन्य क्रिया में वृद्धि के कारण कुल लागत में होने वाली वृद्धि को अतिरिक्त लागत कहते है |
54) निम्न कथनों में से सत्य या असत्य बताइए :
i) लागत फलन, उत्पादन तथा लागतों के बिच सम्बन्ध की व्याख्या करता है |
उत्तर – सत्य
ii) दीर्घकाल में सभी साधन परिवर्ती होते है |
उत्तर – सत्य
iii) स्थिर लागत को पूरक लागत भी कहा जाता है |
उत्तर – सत्य
iv) कुल परिवर्ती लागत फर्म द्वारा स्थिर आगतों पर किया गया कुल व्यय है |
उत्तर – असत्य
55) स्थिर लागत तथा परिवर्ती लागत के बिच अंतर कीजिये |
उत्तर – स्थिर लागत : स्थिर लागत को पूरक लागत भी कहते है | उत्पादन क्रिया में लागते समय, उत्पादक को कुछ ऐसा व्यय वहन करना पड़ता है जो उत्पादन के किसी भी स्तर पर समान रहता है, इतना की यदि उत्पादक उत्पादन को पूरी तरह बंद कर दें, तो भी यह लागतें वहन करनी पड़ती है | उत्पादक द्वारा संयंत्र तथा मशीनरी को खरीदने के लिए उधार ली गयी पूंजी पर ब्याज का भुगतान, प्रबंधको तथा अधिकारीयों का वेतन, आदि पर किया गया व्यय, यह सभी स्थिर लागतें है |
परिवर्ती लागत : वह लागत जो उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने के साथ परिवर्तित होती रहती है परिवर्ती लागत के रूप में जानी जाती है |